बच्चों का दुश्मन है टीका (Children's enemy is vaccine) माँ-बाप जाने अनजाने में बच्चों में विषाक्तत्ता पैदा करते है।
विषाक्तत्ता के मूल कारणों को न तो आधुनिक विज्ञान के चिकित्सक, वैद्य हकीम पहचानकर निकाल पाते हैं और न ही माँ-बाप। उल्टे इन बाल रोगों को प्रकृति का अभिशाप एवं अवश्यभावी मानकर नए-नए टीकों एवं उपचार के तरीके खोजने चले गए।सदियों से हम आहार- विहार संबधी अप्राकृतिक गलतियों को दोहराते चले गए और यह निश्चित मानकर बैठ गये कि बच्चों को बचपन में कोई न कोई रोग तो अवश्य होता ही है।
आधुनिक विज्ञान के संपर्क में आने से पहले इसे लोग देवी-पकोप या प्रेत बाधा समझते रहे-आधुनिक विज्ञान के संपर्क में आने के बाद कीटाणुओं का भूत सर पर चढ़ा लिया लेकिन विषाक्तत्ता के मूल कारणों को न ही जान पाए और न ही निकाल पाए।
"बच्चे कभी बीमार हो ही नहीं सकते"
प्रकृति के इस सत्य पर हमारे अटूट विश्वास के कारण हमने अपने बच्चे को टीके नहीं लगाए या यू कहूँ कि टीकों का लगाना ही बेवकूफी सा लगा,टीकों का बच्चों से क्या लेन-देन! रोग का संबंध तो गलत आहार और जीवन से है, जो हम बच्चों के देने वाले ही नहीं। बच्चों को तो हम सहज प्राकृतिक रूप से जैसे रखना चाहिए वैसे रखेंगे, सैकड़ों बच्चें आज बिना टीके के स्वस्थ निरोगी जीवन जीकर अपने ही खजाने का आनन्द लूट रहे हैं। टीकों का हमारे जीवन में स्थान कहाँ हैं ?
संसार में किसी भी प्राणी के बच्चें में यह विंडबना नहीं है सिवाय मानव के। आप टीका लगवाने जा रहें हैं तो आपने यह निश्चय कर लिया है कि बच्चों को गलत आहार-विहार तो देना ही है, जब शरीर रोग के रूप में आवाज करेगा तो टीका से दबा दिया जाएगा।
टीका वह व्यवस्था है जो गलत आहार-विहार के दुष्परिणामों की आवाज को पहले से ही दबाने का प्रयत्न करता है। यही दबाई हुई आवाज भविष्य में विस्फोटक महामारक रोग में रूपांतरित होकर जोर से फूटती है। एड्स, कैंसर, रोग पागलपन जैसी सभी भयंकर बीमारियाँ-बचपन में दबाई गई चीख का ही रूपांतरित स्वरूप है।
टीके सभ्यता की बर्बादी के बहुत बड़े जिम्मेदार होंगे। न सिर्फ आपको, बल्कि सारी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को एक दिन इस सत्य से परिचित होना ही पड़ेगा। आने वाले भविष्य में हमें नई- नई खतरनाक घातक बीमारियों से जूझना पड़ेगा। हर शारीरिक और मानसिक दमन विस्फोटक होता है। 2 साल तक बच्चों को सिर्फ माँ का दूध दें। माँ के दूध के अभाव में सिर्फ बकरी या गाय का दूध हैं,
भैंस का दूध कतई नहीं, तथा फलों,कच्ची सब्जियों के अलावा किसी भी प्रकार का कोई अन्य आहार (जैसे अनाज, आलू, मेवे, दालें,चीनी,नमक,मसाले, मांस, अंडे, बिस्कुट, ब्रेड इत्यादि) बिलकुल न दें। करीब 6 महीनों के बाद ही रसदार फल एवं फलों के रस देना शुरू कीजिए और थोड़े दांत आने शुरु हो जाने पर गूदेदार फल,चीकू ,पपीता, केला इत्यादि देंना शुरू करें।
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इस तरह 2 साल तक केवल माँ का दूध और फल दें। इतना अवश्य ख्याल रखें समय से तो देना ही हैं परन्तु भूख से ही देना हैं। भूख चूके तो सब चूके! समय बिलकुल महत्वपूर्ण नहीं हैं जितनी महत्वपूर्ण भूख हैं। 2 साल के बाद सामान्य वयस्क की तरह उन्हें 1- 2 बार केवल सभी प्रकार के फल विशेषकर केला, खजूर (भिगोकर) दें। ठोस भोजन में 1 बार सलाद के साथ भीगे हुए मेवे, नारियल, अंकुरित इत्यादि एवं 1 बार सादी पकी हुई हरी सब्जी एक प्रकार का अनाज दिया जा सकता है।
व्यवहारिकता को नजर में रखते हुए अनाज को भोजन में एक बार जोड़ा गया है। बच्चों में अनाज एवं जानवरों के दूध की नहीं, फल एवं मेवों (नारियल, भीगी मूंगफली, अखरोट इत्यादि) की नींव डालिए, ये हमारे अपने आहार है। फिर रोग और रोग के लिए टीकों एवं दवाओं का सवाल ही कहाँ।
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