(अंकुरित अन्न(Sprouted grains) द्वारा वजन और रोग से मुक्ति)-
पके हुए सभी अन्न निश्चित रूप जहाँ अतिरिक्त वजन और रोग बढ़ाते हैं। ठीक इसके विपरीत अंकुरित अन्न(Sprouted grains) फालतू वजन बिलकुल नहीं बढ़ाता, इसलिये वजन कम करने वाले तथा रोगी इसको बेझिझक, निश्चित अपनाकर लाभ उठा सकते हैं। अनाज आग और मशीन से गुजर कर विकृत होते ही रोग कारक एवं वजन बढ़ाने वाला हो जाता है। फिर इस फालतू वजन को कम करने के लिए या वजन बढ़ने से बचने के लिए बैलों की तरह व्यायाम शाला में जुट जाना पड़ता हैं। न तो गलत अन्न खाएँ और न अधिक व्यायाम की सजा भुगतें। पका हुआ अनाज अधिक खाया जाता है। अंकुरित अन्न अधिक नहीं खाया जाता। पका हुआ आहार उत्तेजक है, अंकुरित अनुत्तेजक है। पका हुआ अनाज रोग को प्रोत्साहन देता है स्वास्थ्य का बाधक है।
अंकुरित अन्न रोगावस्था में भी स्वास्थ्य को प्रोत्साहन देता है। कैंसर रोगों में पके हुए अनाज का सेवन सख्त निषेध है और अंकुरित अनाज लाभदायक है। ऑफिस, सफर पार्टियों में इसका खूब आनन्द लिया जा सकता है। पके हुए अनाज जहाँ पाचन में 10 घंटे शरीर की अधिकाधिक शक्ति खींचकर बहुत थोड़ा पोषण देते हैं, वहीं अंकुरित अनाज फल-मेवों की तरह कम से कम पाचन शक्ति का उपयोग कर शरीर को भरपूर पोषण देता है। फल मेवों के अभाव में अंकुरित अन्न ही एकमात्र ऐसा विकल्प हैं जो सामान्य स्वस्थ रोगमुक्त जीवन जीने में सहायक हो सकता हैं। अंकुरित अन्न अपने आप में सम्पूर्ण पोषण नहीं है, इसलिये फल-मेवों के बिना पूर्ण स्वास्थ्य संभव ही नहीं है। संतुलित आहार लेने का समय – पूरे दिन के आहार में 1 बार फल और एक बार मेवा होना जरूरी ही है। 1बार अंकुरित और सलाद खाएँ। दिन- भर हम अगर 4 बार खाते है तो ऐसे खाने का रूटीन बनाये। सुबह 8 बजें – फल एक या दो प्रकार का।
पके आहार का नशा – जो लोग पके हुए अनाज को शीघ्र छोड़ पाने में असमर्थ हैं वह रात के भोजन में कोई भी एक प्रकार का पका हुआ अनाज जोड़ सकते हैं। पूर्णतया अन्न-त्याग की आवश्यकता नहीं हैं- आपको जी हाँ! जीवन भर हमें अनाज को त्यागने की आवश्यकता नहीं है। इसे शोकिया आहार की तरह खायें! स्वाद परिवर्तन और आनन्द के लिए अवश्य खायें। केवल अंकुरित अन्न ही नियमित खायें। सम्पूर्ण अन्न-त्याग की व्यक्तिगत और व्यवहारिक रूप से निश्चित उन कठिनाइयों का अनुभव करेंगे। क्योंकि हम अकेले जंगल में नहीं रहते, वरना अनाज के घोर नशे में डूबे लोगों के साथ जीते हैं, सैकड़ों बार जीवन में ऐसे मौके, वातारण,मजबूरियों परिस्थितियों से गुजरना ही पड़ता हैं, जहाँ हमें अनाज का मजबूरीवश या आनन्दवश सेवन करना ही पड़ता है।
इस समाज और वातावरण से जब तक हम पूर्णतया मुक्त नहीं हो जाते तब तक सम्पूर्ण अन्न-त्याग बहुत कठिन हैं सभी लोगों के पास अन्न त्याग का दृढ-निश्चय नहीं होता। जिनके पास दृढ- निश्चय है वह सचमुच सौभाग्यशाली हैं। परन्तु ऐसी अति में जीने का बिलकुल पक्ष नहीं लेना चाहिये जीवन का सबसे पहला उद्देश्य ”आनन्द” है, मस्ती से और स्वास्थ्य से जीना हैं।
अकेले नही इसी समाज के साथ जीना है। समाज से भागकर नहीं समाज के लिए जीना है। अनाज से संबधित सैकड़ों व्यंजन हमने ऐसे आविष्कार कर दिए हैं कि उनके बनावटी स्वाद के बावजूद भी एक अनोखे स्वाद का जो हमें आनन्द आता है ऐसे स्वादिष्ट अनाज के व्यंजन महीने-दो महीने में एकाध बार खाने में शरीर का कोई नुकसान नहीं पहुंचता। गलत आहार का गलत प्रभाव निश्चित है परन्तु हमारा शरीर इसके दुष्प्रभाव को सहने योग्य होता है, अगर सीमित मात्रा में इसका उपयोग हो! प्रकृति ने हमारा शरीर इतना कमजोर नहीं बनाया कि हम एक दो दिन के गलत खाने से बीमार पड़ जाए। एक दिन के हथौड़े से ये नहीं टूटता बल्कि रोज के नियमित हथौड़े की मार से ये टूट जाता है। शरीर बहुत जबरदस्त सहनशीलता रखता है इसी कारण हमारे अत्याचारों का यह शीघ्र परिणाम नहीं देता। सीमा से बाहर अत्याचार होते हैं तो ही ये टूटता है।
अनाज, दूध, मांस, अंडे जैसे आहार के नुकसान भी इसी कारण कई सालों तक इसी सहनशीलता के कारण पता ही नहीं चलता। सभी दवाए जहर हैं, उनके नुकसान शीघ्र मालूम होते हैं – चाय, कॉफी, शराब, तम्बाकू इनसे थोड़े कम जहरीले हैं, कुछ महीनों या सालों के बाद पता चलता हैं। गलत आहार अनाज, दूध, मॉसहार इत्यादि हल्के जहर है,इनका असर 40-50 सालों में बुढ़ापे में और पीढियों के बाद पता चलता हैं। इसी कारण अनाज दूध, माँसाहार खाने वाले लोग इनका तुरंत नुकसान न देख पाने के कारण इस पर जल्दी विश्वास नहीं करेंगें। सादे ढंग से पकाये गये पूर्ण अनाज (चोकर समेत, बिना पालिश) सप्ताह में एकाध बार स्वाद परिवर्तन के तौर पर बहुत थोड़ी मात्रा में लेना हानिकारक साबित नहीं होगा। दिन भर के पूरे आहार में 20 प्रतिशत से अधिक इसकी मात्रा न हो।
अनाज उपयोग का श्रेष्ठ तरीका – अनाज के उपयोग का एक मात्र श्रेष्ठ तरीका हैं सभी अनाज दालों को भिगोकर अंकुरित कर ताजा बनाकर खाना अनाज अंकुरित होते ही क्षारकारक, सुपाच्य और नए पोषक तत्वों से भरपूर हो जाता हैं,जसमें सबसे आवश्यक तत्व हैं प्राण, एंजाइम्स और विटामिन्स। अनाज का सबसे हानिकारक उपयोग हैं- आगोर मशीनों से गुजरकर विकृत और प्राणविहिन हो जाना। हमारे रोगों का असली जिम्मेदार यही अनाज हैं इसलिए स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए अंकुरित अन्न के सिवाय इसके उपयोग का अन्य कोई उपाय नहीं हैं।
अन्न दोगुणा करने की विधि – (अंकुरित करने की विधि): कोई भी अनाज या दाल अच्छी तरह धोकर अपने से दोगुने पानी में भिगोकर रख दें। रात भर भीग जाने के बाद सुबह पानी निकालकर किसी भी बर्तन में खुले छोड़ दें, ऊपर एक गीला कपड़ा रखकर गर्म स्थान में रख दें। गर्मियों में 3-4 बार और सर्दियों में 1-2 बार दिन में धोकर नमी अवश्य बनाए रखें। ध्यान रहे सूखने नहीं पाए। गर्मियों में 12 घंटे में, सर्दियों में 24 घंटे में अंकुरित फूट पड़ते हैं, हर रोज इसी तरह धोकर नमी बनाए रखें। अंकुरित बढ़ते चले जायेंगे। जब तक मीठे और स्वादिष्ट नहीं रह जाते हैं। गेंहूँ के अंकुरित फूटते ही उपयोग कर लेने चाहिए दालों के अलावा अन्य कोई भी अनाज (ज्वार, बाजरा, मक्कई, चावल इत्यादि) अंकुरित कम रुचिकर होते हैं। स्वाद में सबसे अग्रणी है – मूंग, मोठ, चने, मसूर इसके बाद सोयाबीन, गेंहूँ एवं दालें।
खाने की विधि: कड़क भूख होने पर ये सादे ही बहुत अच्छे लगते हैं। फिर भी नई आदत डालने वालों को व्यंजन बनाकर दिए जा सकते हैं जो अत्यंत स्वादिष्ट बनते हैं। मीठे अंकुरित – (1) नारियल, खजूर के टुकडें मिलाकर खायें। (2) केले और अंकुरित खाएँ। (3) मीठे सूखे फल और मेवें मिलाकर खाएँ । नमकीन अंकुरित – (1) खीरा, टमाटर, प्याज मिलाकर खाएँ। (2) नींबू, हल्का नमक धनिया पुदीना डालकर खाएँ। (3) चटनी के साथ खाएँ। (4) ताज़ी कच्ची सब्जियाँ और हरे व्यंजन मिलाकर खाएँ। बस केवल इतनी ही सावधानी बरते कि यें व्यंजन के रूप में अक्सर ज्यादा खा लिए जाते हैं, जिससे अति आहार की हानि उठानी पड़ती हैं। अंकुरित अन्न का सिर्फ सलाद-सब्जियों के साथ ही उचित मेल हैं- फल, मेवें, दूध के साथ ये अधिक लाभप्रद नहीं हैं।
दुष्पाच्य स्टार्च के कारण अन्न दालें फरमेंट और अंकुरित की जाती हैं – मानव सभ्यता को सदियों पहले यह एहसास हो गया था कि अन्न-दालें थोड़ी दुष्पाच्य हैं और अच्छे पाचन के लिए मेहनत माँगते हैं। इसी कारण इसको सुपाच्य बनाने के लिए फरमेंट (खमीर उठाने) की विधियाँ अपनाई गई। गेहूँ सीधे न खाकर ब्रेड के रूप में परिवर्तित किया गया,चावल को इडली के रूप में,दाल को ढोकले के रूप में परिवर्तित किए गए। यही अपने आप में प्रमाण हैं कि अन्न दालों, को सुपाच्य बनाने के लिए कितने ताम-झाम अपनाए गए हैं।
अंकुरित अन्न दालें भी इसी कारण विकसित हुई, आज स्वस्थ एवं पोषण जगत में अंकुरित अन्न को प्राणवान, पोषण युक्त, स्वास्थ्य वर्धक आहार माना जाता हैं। उसकी तुलना में सामान्य पके हुए आहार की इस तरह प्रशंसा नहीं की जाती, क्योंकि पके हुए अन्न-दालें खाना एक आदत या व्यसन मात्र हैं इसलिए सभी को अंकुरित अन्न-दालें खाने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता हैं। यही अपने आप में स्पष्ट प्रमाण हैं कि पका हुआ अन्न इतना स्वास्थ्य वर्धक नहीं हैं। जितना ताजा एवं प्राणवान अंकुरित अन्न। हालांकि अंकुरित अन्न का हम भरपूर आनंद ले सकते हैं, परन्तु फल, मेवों की तुलना में ये द्वितीय नम्बर पर हैं। ये भोजन में न भी हों तो हमारे शरीर को कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु फल और मेवे न होने से बहुत बड़ा फर्क पड़ता हैं।
अन्न त्याग- कितना व्यवहारिक ?– अनाज खूब उत्पादन कर इतना सस्ता कर दिया जाता हैं कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी अपना पेट भर लेता हैं। फल-मेवें अनाज के मुकाबलें अभी इतने सस्ते और हर जगह उपलब्ध नहीं होतें। ऐसी अवस्था में संपूर्ण अन्न त्याग व्यवहारिक नहीं लगता। हमारा वेतन अनाज को देखते हुए मिलता हैं, फल मेवों के अनुसार नहीं। अकेला व्यक्ति या अकेले दम्पति फल मेवे जितना आसानी से उपयोग कर सकते हैं वहीं एक 5 से अधिक सदस्यों वाला परिवार इसे अपनाने में शायद कठिनाई महसूस करेगा। फिर इसे व्यवहारिकता में कैसे लाएँ ?
प्रकृति के नियम और शरीर हमारी मजबूरियों भावनाओं और प्रगति-उन्नति को नहीं पहचानते गलत आहार और गलत जीवन में हम कितना दूर जा चुके हैं, इससे इन्हें कोई लेन-देन नहीं, शरीर को बस स्वस्थ रहने के लिए अपना सही प्राकृतिक आहार चाहिए। आप दें सकते हैं तो स्वस्थ रहिए नहीं रह सकते तो रोगी बने रहिए। आपकी मजबूरी आपको अंधेरी कोयले की खान में काम करवाती होगी परन्तु शुद्ध हवा शरीर को चाहिए ही। प्रकृति के नियम अटल हैं!