1. प्राणायाम (Pranayama)का अभ्यास शुद्ध एवं खुले स्थान में करना चाहिए। धूल, धुंआ, सीलन व दुर्गन्ध वाले स्थान में अभ्यास न करें। 2. बहुत तेज हवा में अभ्यास वर्जित है। 3. अभ्यास करते समय शरीर पर मौसम के अनकल वस्त्र हों। वस्त्र अधिक कसे हुये न हों। 4. अभ्यास शनै:-शनैः बढ़ाना चाहिए। 5. खाली पेट ही अभ्यास करना चाहिए। भोजन करने के चार घन्टे पश्चात् व आधा घन्टा पूर्व प्राणायाम का अभ्यास किया जा सकता है। 6. सर्दी के दिनों में (सितम्बर से मार्च तक) प्राणायाम का अभ्यास बढ़ाना चाहिए। शनैः-शनैः आवृत्तियों/मात्राओं का अभ्यास बढ़ाएं और अभ्यास दिन में तीन बार प्रातः, मध्याह्न व सायं भी कर सकते हैं। गरमी के दिनों में (अप्रैल से अगस्त तक) जो अभ्यास चल रहा है उसी को बनाये रखना लाभकारी है। 7. साधारणत: वात प्रधान प्रकृति वालों को शीतली व शीतकारी, पित्त प्रधान प्रकृति वालों को सूर्य भेदी, भस्त्रिका आदि नहीं करना चाहिए। उच्च रक्तचाप वालों के लिए सूर्यभेदी एवं भस्त्रिका वर्जित हैं। 8. दमा, उच्च रक्तचाप, हाईपरटेन्शन से पीड़ित रोगियों को कुम्भक नहीं करना 9. प्रात:कालीन अभ्यास अधिक उत्तम व श्रेष्ठ है। सर्दियों के दिनों में दोपहर एवं सायंकाल भी अभ्यास किया जा सकता है। 10. गर्मियों में भस्त्रिका, सूर्यभेदी एवं सदियों में शीतली, शीतकारी, चन्द्रभेदी न 11. प्रारम्भ में श्वास गहन भरने व छोड़ने के अभ्यास को शनैः-शनैः बढ़ाना चाहिए तथा कुछ समय के बाद लयबद्ध होन पर आन्तरिक कुम्भक को अभ्यास में शामिल करें। 12. अच्छा अभ्यासी होने के लिए दायकालीन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन शीघ्र सफलता में सहायक है। 13. इसके विपरीत ब्रह्मचर्य एवं आहार आहार संयम के बिना आध्यात्मिक साधना में पूर्ण सफलता नहीं मिलती। 14. जब कभी किसी तरह की निराशा या आशा के आवेग आदि का अनुभव करें। तो प्राणायाम का सहारा लें तुरन्त उसका निदान होगा। क्रोध आदि पर शीघ्र। काबू पाने के लिए गहरा लम्बा श्वास अधिक सहायक है। 15. प्राणायाम के अभ्यास से आधा घंटा बाद स्नान कर सकते हैं। अच्छा तो यह है कि स्नान के बाद ही प्राणायाम का अभ्यास करें। 16. पसीना आने पर तौलिये से पोंछने के स्थान पर हाथों से ही शरीर में मालिश करना उपयोगी है। 17. आसन पर चौरस किया हुआ कम्बल तथा इसके ऊपर सफेद सूती कपड़ा। बिछा लें। शरीर की ऊर्जा भूमिगत नहीं होगी। कपड़ा रोज धुलता रहे तो अच्छा 18. शरीर को स्थिर रखने से ही प्राणायाम के अभ्यास में सफलता मिलती है। अत: पद्मासन में बैठकर अभ्यास अत्युत्तम है। 19. पूरक, कुम्भक व रेचक का अनुपात इतना सहज हो कि किसी स्तर पर श्वास । घुटने न पाए तथा किसी तरह के कष्ट या तनाव का अनुभव न हो। 20. सूर्यभेदी से वायु प्रकोप, उज्जायी से कफ, शीतली व शीतकारी से पित्त तथा भस्त्रिका से तीनों दोष दूर होते हैं। 21. निरन्तर अभ्यास को न तोड़ें अन्यथा प्रगति सहज न होगी। अनियमित अभ्यासी को कुम्भक लगाने का अधिकार नहीं है अन्यथा क्षति को संभावना है। 22. हर प्राणायाम के पश्चात् श्वास को विश्राम देना आवश्यक है। उखड़े हए श्वास के साथ प्राणायाम न करें। 23. आँखें बन्द रखने पर ही अभ्यास-काल में अन्तर्मुखी होना सम्भव है। जो बारम्बार आँखें खोलते हैं उनको अन्तर्मुखी अवस्था कभी ग्रहण नहीं होगी। 24. प्राणायाम के अच्छे अभ्यासी को हल्का, सुपाच्य, सात्विक भोजन अनिवार्य है। मिताहारी एवं सायं का भोजन 6-7 बजे करने वालों को सफलता जल्दी। मिलेगी। 25. अगर 5-7 दिन का किसी कारणवश अभ्यास में अवरोध आ जाए तो नारा साधक के समान अभ्यास प्रारम्भ करना उपयोगी सिद्ध होगा, न कि उस स्तर पर जिस स्तर पर आपने अभ्यास छोड़ा था। पर इस स्थिति में मात्रा को शोध बढ़ाया जा सकता है।
Garmi k mausam me Sitali Pranayaam k liye bola jata hai,Baat-Prakriti wale agar Sitali pranayam na karen to garmi me aur kya karna chahiye ?
Sar dimag taij karani ka upay batayi