प्राकृतिक आहार का सेवन (Natural dietary intake) करने पर आपको कभी बीमार नहीं करेगा प्रकृति (ईश्वर) ने संसार में किसी भी प्राणी के लिये आहार की कमी कभी नहीं रखी हैं।
कच्चा खाने योग्य प्राकृतिक आहार-
मानव स्वंय अपने हाथों स्थान बदल-बदलकर, गलत जगहों पर जाकर, बसकर, मजबूरी से असामान्य, अनुपयुक्त, गलत आहार को अपनाने पर मजबूर हो गया और अपने-आपको ऐसी भयंकर सजा दे बैठा जिसको वह हजारों रोगों के रूप में आज तक भुगत रहा हैं। प्रकृति ने तौल-तौलकर हमें हवा, पानी या आहार नहीं दिया बल्कि इनके खजानों को चारों और बिखेर रखा है । उसने हर चीज हमारी आवश्यकता से सैकड़ों गुणा अधिक बनाई है। हवा भरपूर, फल, सब्जियाँ, मेवे भरपूर इनके असीम आहार ऐसे भरे पड़े हैं कि हम चाहे जितना लूटें, इनकी मात्रा में कमी नहीं आती। धरती पर इतना चारा, इतने पेड़ पैदा किये हैं कि चरने वालों पशुओं की भले कमी हो जाये, लेकिन चारों और पेड़ों के पत्तों, फलों की कमी नहीं होने वाली। ऐसा है ईश्वर का साम्राज्य। मित्रों! परमात्मा (प्रकृति) पर सच्ची श्रदा और पूरा विशवास रखो और खूब लूटो उसके अनमोल खजाने को। वह अपनी संतानों को स्वस्थ, विकसित, दीर्घजीवी, रोगरहित देखना चाहता है। ये अनमोल खजाने है
फल-
ताड़फल, अनार, सेब, किवी, अवेकेड़ो, अन्ननास, नाशपती, गन्ना, लीची, अमरूद, नाग, आम,प्रुन्स, पपीता, बाघुघोषा, जामुन, स्ट्राबेरी, चीकू, रसभरी, शहतूत, फालसा, केला, चेरी, कंभ्रक, बेल, संतरा, खुमानी, तरबूज, चकोतरा, मौसमी, आडू, खरबूजा, आँवला, अंगूर (सफेद), अंजीर, सीताफल, नींबू , गूर(काले), आलूबुखारा, खजूर, कटहल (फणस), काजूफल, जंबूफल, ग्रेपफ्रूट वगैरह। इस तरह अनेक देशी-विदेशी फल हैं यंहा केवल उन फलों के नाम ही है जो भारत में उपलब्ध हैं। इस धरती पर अनेक तरह के फल हैं।
नारियल, पिस्ता, मूंगफली, हिकोरीनट, अखरोट, चिलगोजा, ब्राजीलनट, हेजलनट, बादाम, काजू, बैडनट इस तरह कई प्रकार के मेवे धरती पर विभिन्न स्थानों पर पैदा होते हैं।
खाने योग्य बीज तिल-
सूर्यमुखी के बीज तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, सफेद एवं लाल पेठे के बीज, ककड़ी खीरे के बीज इत्यादि ।
मूंग, चने, सोयाबीन, मोठ, लोबिया (लाल और सफेद) किडनी बीन सभी दालें, रिजका, गेहूँ ।
प्राकृतिक पेय-
नारियल पानी नीरा ढेर सारे मेवे, फल, सब्जियाँ। कितनी चाहिए मानव को? परन्तु मानव को इतने फल, सब्जी, मेवे एवं दालों की आवश्यकता नहीं है। जिस धरती पर जैसा मौसम, वातावरण उपज है,वहीं के कुछ फल- सब्जियाँ,एक- दो प्रकार के कंद मानव को मौसम अनुसार चाहिए जिससे संतुलित पोषण सहज ही प्राप्त होता है। सोचिये! उत्सव, पिकनिक और पार्टियों में आप बनावटी, पेय, तले और पके विकृत आहार, मिठाइयाँ, चाय, कॉफी, शराब जैसी वस्तुएँ उपयोग कर अपने और अपने प्रियजनों एवं मेहमानों के आरोग्य की नींव डाल रहे हैं, या जडें खोदकर उखाड़ रहे हैं। सामाजिक परम्परा का यह बहाना, यह कमजोरी आप कब तोड़ेंगे ? सैकड़ों रुपयों की बर्बादी पर क्यों आप रोग खरीदने पर तुले हुए हैं ? क्या अधिकार है आपको किसी का आरोग्य बर्बाद करने का ? क्या हमारे उत्सव फल, फलरस, प्राकृतिक मिठाइयाँ और सादे पके आहार से दुगुने आनन्द से नहीं मनाये जा सकते ? क्या ऐसे आहार का उपयोग सामाजिक जुर्म है ? क्या आप हीनता अनुभव करते हैं ? क्या आप के अंह को चोट लगती है ?