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दवा के लिए शहद (honey for medicine) का उपयोग करें, स्वाद के लिए नहीं

शहद का उपयोग दवा के लिए करे(honey for medicine)-
इतना तो सामान्य बुद्धि से सभी निश्चित जानते हैं। कि मधुमक्खी खूब मेहनत कर मानव के उपयोग के लिए शहद इकट्टा नही करती। दो लाख फूलों का रस लेने के बाद मधुमक्खी करीब 500 ग्राम शहद इकट्ठा कर पाती हैं। और इन लाखों फूलों से इकट्ठा किया हुआ कुछ किलो शहद मानव बड़ी आसानी से चुरा लेता है शहद मधुमक्खी के बच्चों के अलावा पृथ्वी पर किसी भी प्राणी के पाचन के अनुकूल नहीं है, न किसी भी प्राणी को इसकी आवश्यकता है मानव ने शहद मजबूरी से ही चुराया और इस पर अपना हक जमाकर वर्तमान तक चुराता जा रहा है
विधाता ने हमारे आहार में इतनी ज्यादा मिठासयुक्त फल दिए हैं कि हमें मिठास के लिए किसी अन्य प्राणी के जीवन में दखलंदाजी कर उसे लूटने की आवश्यकता नहीं रखी क्यों चाहिए हमें शहद? यूँ ही चाटने के लिए या दिल बहलाने के लिए, शहद खाना एक अनावश्यक आदत है औषध या उपचार की द्रष्टि से भले ही कोई थोड़े दिन अपना लें, परन्तु नियमित जीवन में इसका स्वास्थ्य या रोगमुक्ति से कोई सरोकार नहीं है उपचार में भी इसकी बिलकुल आवश्यकता नहीं हैं।

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आयुर्वेद ने,जिसमें कड़वी,कसैली,तीखी दवाओं को किसी तरह मरीजों को खिलाने के लिये शहद का उपयोग किया गया दूध की तरह शहद को भी आयुर्वेद एवं अन्य चिकित्सकों ने आसमान पर चढ़ाकर रख दिया हैं। इसकी गुणवत्ता एक मामूली से फल के बराबर हैं। और कई मायने में तो यह एक फल का भी मुकाबला नहीं कर सकती जितने विटामिन या खनिज तत्वों की इसमें व्याख्या की जाती है,उससे कई गुणा बेहतर ये तत्व फलों में हैं। शहद में कई जहरीले फूलों के अंश भी मिले होते हैं। जो मानव के लिये हानिकारक होते हैं।
इसकी एसिड बच्चों के नाजुक आमाशय एवं आँतों में प्रदाह पैदा करता हैं। तथा दस्तों का कारण बनता हैं। यह रक्तशर्करा को असंतुलित कर देता हैं। शहद को किसी भी ठोस आहार अनाज,दूध,दही,पनीर,मेवे,ब्रेड जैसी चीजों के साथ खाने से पेट में सड़कर अपच का कारण बनता हैं। एसिडिटी,गैस का यह प्रमुख कारण है,सच्चाई जानने के लिये खाकर अनुभव कर लें।
पाचन के नियमानुसार हर मिठास चीनी,गुड़,शहद, जैम आदि किसी भी आहार (स्टार्च या प्रोटीन)के साथ सड़ते हैं। इनको अकेले ही खाना उचित है या पानी में घोल कर खायें, अगर खाना पड़े तो शहद में निहित मेनिट अम्ल ठोस आहार के साथ चीनी,गुड़ से भी ज्यादा हानिकारक है तथा निश्चित रूप से सड़न-अपच पैदा करता हैं। स्वास्थ्य एवं दीर्घायु,सही प्राकृतिक आहार,शारीरिक मेहनत,प्राकृतिक जीवन जैसे सरल नियमों से प्राप्त होता है,शहद या किसी विशेष आहार से नहीं। एसिडिटी,अल्सर से ग्रस्त एवं उच्च संवेदनशील रोगियों को शहद का कभी उपयोग नहीं करना चाहिये।
शहद का में विरोधी नहीं हूँ,लेकिन शहद के बारे में जो भ्रम एवं बढ़ा-चढ़ाकर जो विशेषता दी गई हैं। उसकी वास्तविकता से परिचय करवाने के लिये इसके हानिकारक, अमानवीय पहलुओं पर मैनें प्रकाश डाला हैं। शहद को केवल एक औषधि के रूप में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिये। और औषधि नियमित आहार नहीं बनना चाहिये।
मांसहार,अन्न,दूध,दालों एवं मसालों के मुकाबले शहद का हानिकारक प्रभाव नहीं के बराबर है,शहद इन आहारों की तरह विषाक्तता नहीं पैदा करता,पाचन एवं मल-निष्कासक अंगों पर बोझ बनकर उनको यह इन आहारों की तरह तोड़ता नहीं हैं। इसलिये आदत बदलने की द्रष्टि से और प्राकृतिक आहार पर लाने के लिये मैनें अपनी इस पोस्ट में शहद के उपयोग को महत्व दिया है, नियमित उपयोग के लिये नहीं। शहद एक हिंसा है,एक चोरी है,अमानवीय आहार हैं।
जिसके ह्रदय में में थोड़ी भी करुणा होती है,वो शहद को खाने के बहाने से पहले 10 बार सोचेगा या नहीं खायेगा मधुपालन केन्द्रों में मिलने वाला शहद चालाकी से चुराया गया। शहद है मधुपालन एक ऐसा ही खिल है जैसे कोई प्राणी दिन-रात अथक मेहनत अपने कर ने बच्चों और परिवार के लिए आहार एवं धन संग्रह करता रहता हैं। और दुसरा प्राणी अहिंसा के बहाने उस आहार को चालाकी से बार-बार लुटता रहता हैं।
उनकी आत्मा को कितनी असीम पीड़ा होती होगी ,इसको केवल एक संवेदनशील ह्रदय ही समझ सकता है कमाए कोई ,लाभ उठाये कोई व्यवसाय, भुखमरी एवं आवश्यकता के लालच में हम यह संवेदनशीलता ही खो चुके हैं (विशेषकर कोई महात्मा,संत या शाकाहारी इसका उपयोग करता हैं। तो निश्चय ही उनकी प्रकृति के नियमों के प्रति अज्ञानता के लिए तथा अनजाने में उपयोग कर हिंसा के भागीदार बनने के लिए अफसोस होता है एकमात्र जैन सम्प्रदाय ही इसका उपयोग नही करता हैं।
आहार के मामले में यही एक सम्प्रदाय सबसे अधिक अहिंसक है इसमें सिर्फ इतना ही अंतर है कि आप किसी को सीधे नहीं मारकर,उसकी आजीविका एवं आहार चुराकर, छीनकर,उनको पीड़ित कर अत्याचार करते हैं,इस हिंसक चालाकी को मधु-चोरी ने अहिंसक मधु जैसे नामों के सुंदर शब्दों ढककर अपने आप को ही धोखा दिया हैं।
मानव चाय,काढ़ा,शरबत,मिठाइयाँ,दवाएँ जैसी कमजोरियों को जारी रखने के लिए तथा चीनी की हानि से बचने के लिए शहद का उपयोग अनावश्यक रूप से करता रहता हैं। और हिंसा का भागीदार बन रहा है चीनी से बचने के लिए शहद न अपनायें और जो चीजें बगैर शहद मिलाए नहीं खाई जा सकतीं,उन्हें खाए ही नहीं। अच्छी मात्रा में फल खाने वाले को शहद याद ही नहीं आता। और यह आवश्यक भी नहीं हैं। शहद, दूध,मसाले,औषध की तरह इस्तेमाल करें,आहार के रूप में नहीं। धन्यवाद

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